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नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण आदेश पारित करते हुए यह स्पष्ट किया है कि उपस्थिति की कमी (Lack of Attendance) के कारण किसी भी कानून के छात्र को परीक्षा में बैठने से रोका नहीं जाना चाहिए। यह फैसला उन हजारों छात्रों के लिए बड़ी राहत लेकर आया है जो कभी-कभी अपरिहार्य कारणों से निर्धारित उपस्थिति मानकों को पूरा नहीं कर पाते हैं। कोर्ट का यह आदेश छात्रों के भविष्य और शिक्षा के अधिकार को सर्वोपरि रखता है।
यह आदेश अदालत ने सुशांत रोहिल्ला आत्महत्या मामले से संबंधित एक स्वतः संज्ञान याचिका (Suo Motu Petition) का निपटारा करते हुए दिया, जिसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा शुरू किया गया था। सुशांत रोहिल्ला, एक कानून छात्र थे, जिन्होंने कम उपस्थिति के कारण उन्हें परीक्षा देने से रोके जाने के बाद आत्महत्या कर ली थी। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में शैक्षणिक संस्थानों को मानवीय दृष्टिकोण अपनाने और छात्रों की मानसिक स्वास्थ्य तथा परिस्थितियों पर विचार करने का निर्देश दिया है।
अदालत ने कहा कि उपस्थिति की कमी के बावजूद, यदि छात्र शैक्षणिक रूप से सक्षम है, तो उसे परीक्षा में शामिल होने का एक मौका मिलना चाहिए। हाईकोर्ट ने विश्वविद्यालयों और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) को निर्देश दिया है कि वे उपस्थिति नियमों को अधिक लचीला और छात्र-हितैषी बनाएँ। यह फैसला छात्रों पर अनावश्यक दबाव को कम करने और उन्हें आत्महत्या जैसे चरम कदम उठाने से रोकने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।