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वर्षों से लंबित मानहानि मामले में जांच रिपोर्ट ने बढ़ाई थी गंभीरता
इस मामले की शुरुआत चार साल पहले हुई थी। सब-जज मोहम्मद नईम अंसारी ने मनगढ़ंत खबर प्रकाशित होने पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा था कि इससे उन्हें न्यायिक पद पर रहते हुए बदनाम किया गया। उनके अनुसार यह पूरी घटना एक योजनाबद्ध साजिश थी। पुलिस ने उनकी शिकायत पर IPC की चार धाराओं में प्राथमिकी दर्ज की। इस मामले की जांच लंबी चली। पुलिस ने आरोपों को प्रमाणित किया। इसके बाद अगस्त 2023 में आरोप पत्र दायर हुआ। अदालत ने सितंबर में इसे स्वीकार किया। अभियुक्तों को समन भेजे गए।
तीन अन्य अभियुक्त पहले ही जमानत ले चुके थे। लेकिन पत्रकार की अनुपस्थिति ने स्थिति को जटिल बनाया। अदालत को जमानती वारंट जारी करना पड़ा। बाद में गैर जमानती वारंट भी जारी किया गया। इससे मामले की गंभीरता और बढ़ गई। पत्रकार ने इस वारंट के बाद स्वयं समर्पण किया। उन्होंने जमानत याचिका दायर की। अदालत ने इसे सुनवाई के लिए स्वीकार किया। मामले के दस्तावेज अदालत के सामने रखे गए। दलीलें भी पेश की गईं। न्यायिक दंडाधिकारी ने सभी तथ्यों पर विचार किया। इसके बाद पत्रकार को राहत दी गई।
यह मामला सिर्फ अदालत और पत्रकार तक सीमित नहीं रहा। यह मीडिया की विश्वसनीयता से भी जुड़ा है। गलत खबर और मानहानि के मामलों से पत्रकारिता की नैतिकता प्रभावित होती है। न्यायपालिका भी इस मामले में गंभीर है। अदालत का निर्णय कानून के तहत संतुलित माना जा रहा है। यह मामला भविष्य में मिसाल बन सकता है। आगे की प्रक्रिया पर सबकी निगाहें हैं। पुलिस और अदालत दोनों इस पर नजर बनाए हुए हैं। पत्रकार को अब अदालत की तिथियों पर अनुपस्थित न रहने का निर्देश दिया गया है। मामले की सुनवाई जारी रहेगी।