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इस ऑपरेशन में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की विशेष इकाई कोबरा बटालियन, छत्तीसगढ़ पुलिस के बस्तर फाइटर्स और जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) जैसी प्रमुख सुरक्षा बल संयुक्त रूप से कार्रवाई कर रहे हैं। इस बड़े पैमाने के अभियान ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या यह क्षेत्र में माओवादी विद्रोह का अंतिम चरण है या सुरक्षा बलों की रणनीति में कोई बड़ा बदलाव आया है।
करेगुट्टालु और इसके आसपास का क्षेत्र लंबे समय से माओवादियों का एक मजबूत गढ़ रहा है। ‘ऑपरेशन कागर’ का मुख्य उद्देश्य इस क्षेत्र से माओवादियों के प्रभाव को पूरी तरह से समाप्त करना और सीमावर्ती इलाकों में शांति और सुरक्षा स्थापित करना है। सुरक्षा बलों की भारी तैनाती और समन्वित हमलों ने माओवादी समूहों पर जबरदस्त दबाव बनाया है, जिससे उनके संचालन और संचार नेटवर्क को काफी नुकसान पहुंचने की संभावना है।
हालांकि, इस आक्रामक अभियान के साथ ही कुछ विश्लेषक यह भी मान रहे हैं कि क्या यह माओवादी समस्या से निपटने के लिए सुरक्षा बलों की रणनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है। कुछ का मानना है कि यह माओवादियों के खिलाफ एक निर्णायक लड़ाई हो सकती है, जबकि अन्य इसे क्षेत्र में सुरक्षा बलों की स्थायी उपस्थिति और प्रभुत्व स्थापित करने की एक व्यापक योजना का हिस्सा मानते हैं। ‘ऑपरेशन कागर’ के परिणाम न केवल इस क्षेत्र में माओवादी हिंसा की भविष्य की दिशा तय करेंगे, बल्कि देश के अन्य नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लिए भी एक महत्वपूर्ण उदाहरण स्थापित कर सकते हैं।