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कोलकाता, पश्चिम बंगाल: पश्चिम बंगाल की प्रमुख और महत्वाकांक्षी ‘देवचा-पचामी देवांगंज हरिभंगा (DPDH)’ परियोजना का भविष्य अधर में लटका हुआ दिखाई दे रहा है। यह बड़ा सवाल बना हुआ है कि क्या यह विशाल परियोजना कभी हकीकत बन पाएगी, क्योंकि इससे जुड़े प्रासंगिक सवालों को लेकर प्रशासन भी चुप्पी साधे हुए है। यह अनिश्चितता राज्य के औद्योगिक और ऊर्जा क्षेत्र के विकास के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है।
राज्य सरकार की इस महत्वाकांक्षी परियोजना में हो रही देरी का मुख्य कारण आदिवासी गांवों द्वारा अपनी जमीन देने से स्पष्ट इनकार है। देवचा-पचामी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कोयले का भंडार मौजूद है, जिसके खनन और संबंधित बुनियादी ढांचे के विकास के लिए हजारों एकड़ जमीन की आवश्यकता है। हालांकि, स्थानीय आदिवासी समुदाय अपनी पैतृक भूमि, पारंपरिक जीवनशैली और आजीविका के संभावित नुकसान के कारण विस्थापन का कड़ा विरोध कर रहा है। सरकार द्वारा बेहतर पुनर्वास पैकेज और मुआवजे की पेशकश के बावजूद, ग्रामीण अभी भी अपनी भूमि देने को तैयार नहीं हैं, जिससे यह गतिरोध परियोजना के आगे बढ़ने में सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है।
सरकार के लिए स्थानीय लोगों का विश्वास जीतना और उनकी चिंताओं को दूर करना एक बड़ी चुनौती साबित हो रहा है। यदि यह परियोजना सफल होती है, तो यह पश्चिम बंगाल के लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक बढ़ावा साबित हो सकती है, जिससे बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर पैदा होंगे और राज्य की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित होगी। हालांकि, जब तक भूमि अधिग्रहण और स्थानीय समुदाय की सहमति का मुद्दा पूरी तरह से हल नहीं हो जाता, तब तक इस विशाल और रणनीतिक परियोजना का भविष्य अनिश्चित बना हुआ है।