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न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और मनमोहन की पीठ ने कहा कि यह बढ़ती प्रवृत्ति देखी जा रही है कि व्यक्ति, इस अदालत से जमानत की रियायत या गिरफ्तारी से सुरक्षा की रियायत मांगते समय, विशेष अनुमति याचिकाओं में अन्य आपराधिक मामलों में अपनी संलिप्तता का खुलासा नहीं करते हैं।
पीठ ने 3 अप्रैल को पारित एक आदेश में कहा, “ऐसे मामलों में जहां संलिप्तता का खुलासा नहीं किया जाता है, इस बात की प्रथम दृष्टया संतुष्टि पर कि मुकदमे में उचित प्रगति के बिना लंबी कैद आरोपी के जीवन के अधिकार पर आक्रमण कर रही है या जिन अपराधों के लिए प्राथमिकी दर्ज की गई है, वे बहुत गंभीर नहीं हैं, नोटिस जारी किए जाते हैं और उसके बाद ही, संबंधित प्रतिवादियों-राज्यों द्वारा दायर हलफनामों में आपराधिक पूर्ववृत्त की जानकारी प्रदान की जाती है, जैसा कि वर्तमान मामले में है।”
पीठ ने कहा कि परिणाम यह है कि इस अदालत को, देश की सर्वोच्च अदालत होने के नाते, मूर्ख बनाया जा रहा है, और कहा, “इस अदालत ने अतीत में उदारता दिखाई है, लेकिन हमें लगता है कि ऐसे हालात को आगे जारी रखने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए”।