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प्रदूषण के स्रोत पर काम करने पर जोर
नई दिल्ली: ‘एंड-ऑफ-लाइफ’ (EoL) वाहनों, यानी पुराने वाहनों पर सरकार की सख्ती पर अब पर्यावरणविदों ने सवाल खड़े किए हैं। उनका तर्क है कि प्रदूषण से निपटने के लिए केवल पुराने वाहनों को हटाने की बजाय प्रदूषण के मूल स्रोत पर काम करना अधिक प्रभावी होगा। यह बहस ऐसे समय में तेज हुई है जब दिल्ली जैसे शहरों में वायु प्रदूषण एक गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है।
मौजूदा नियमों के तहत, 10 साल से पुराने डीजल वाहन और 15 साल से पुराने पेट्रोल वाहन EoL वाहनों की श्रेणी में आते हैं, और इन्हें सड़कों से हटाने का अभियान चलाया जा रहा है। हालांकि, पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि केवल पुराने वाहनों को हटाने से समस्या पूरी तरह हल नहीं होगी। वे इस बात पर जोर दे रहे हैं कि उद्योग, निर्माण स्थलों, पराली जलाने और अपशिष्ट प्रबंधन जैसे अन्य प्रमुख प्रदूषण स्रोतों पर भी गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है। उनका कहना है कि पुराने वाहनों से होने वाला प्रदूषण कुल प्रदूषण का एक छोटा हिस्सा है, और केवल उन पर ध्यान केंद्रित करना एक अधूरा समाधान है।
पर्यावरणविदों ने सरकार से अपील की है कि वह एक व्यापक और एकीकृत दृष्टिकोण अपनाए, जिसमें सभी प्रदूषण स्रोतों को लक्षित किया जाए। इसमें स्वच्छ ईंधन को बढ़ावा देना, सार्वजनिक परिवहन में सुधार करना, औद्योगिक उत्सर्जन को नियंत्रित करना और टिकाऊ शहरी नियोजन शामिल है। उनका मानना है कि जब तक प्रदूषण के सभी स्रोतों पर एक साथ काम नहीं किया जाता, तब तक वायु गुणवत्ता में स्थायी सुधार संभव नहीं होगा।