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अदालत ने यह टिप्पणी ऐसे समय में की है जब कुछ भाजपा नेताओं ने हाल ही में उस फैसले पर विवादास्पद बयान दिए थे, जिसने राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए विधेयकों को मंजूरी देने की समय सीमा प्रभावी रूप से तय की है।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह से कहा कि अदालत पहले से ही चुनावी मामलों और विधेयकों को मंजूरी देने जैसे मुद्दों पर सुनवाई कर रही है, और अब उसे दंगों से संबंधित एक और याचिका पर सुनवाई करने के लिए कहा जा रहा है। पीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि अदालत कार्यपालिका के कार्यों में हस्तक्षेप कर रही है।
हालांकि, अदालत ने याचिका को खारिज नहीं किया और कहा कि वह इस पर विचार करेगी। अदालत ने राज्य सरकार से दंगों पर एक विस्तृत रिपोर्ट भी मांगी है, जिसमें हिंसा की घटनाओं का विवरण और पीड़ितों के लिए उठाए गए कदमों का उल्लेख हो। यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच शक्तियों के पृथक्करण को लेकर बहस चल रही है।