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स्थानीय लोग कहते हैं कि यह भगवान शिव का ‘आशीर्वाद’ है जो इस परिवार को इस कला को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाने की शक्ति दे रहा है।
सागर परिवार कई पीढ़ियों से पीतल की जलहरी बनाने के काम में लगा हुआ है। जलहरी, जिसका उपयोग शिवलिंग पर लगातार जल चढ़ाने के लिए किया जाता है, का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। आधुनिकता के इस दौर में जहां मशीनों से बनी वस्तुएं बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं, सागर परिवार आज भी हाथ से जलहरी बनाकर अपनी अनूठी कला को बचाए हुए है। उनकी बनाई जलहरियों में पारंपरिक डिजाइन और कारीगरी की झलक मिलती है, जो उन्हें मशीनों से बनी वस्तुओं से अलग करती है।
स्थानीय लोगों का मानना है कि सागर परिवार पर भगवान शिव की विशेष कृपा है, जिसके कारण वे इतने समर्पण और कुशलता से इस पारंपरिक शिल्प को निभा रहे हैं। परिवार के सदस्य भी इस कला को अपनी विरासत मानते हैं और इसे भविष्य की पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनकी यह कहानी न केवल एक शिल्प कला के जीवित रहने की कहानी है, बल्कि यह परंपरा और आस्था के अटूट बंधन को भी दर्शाती है।