representation image
बाघों का गाँवों में आना
बेंगलुरु: कर्नाटक के प्रसिद्ध बांदीपुर और नागरहोल बाघ अभयारण्यों के आसपास के क्षेत्रों में मानव-पशु संघर्ष में तेजी से वृद्धि हुई है। वन्यजीव विशेषज्ञों ने पुष्टि की है कि बाघ अब भोजन और क्षेत्र की तलाश में अक्सर जंगलों की सीमा पार कर आस-पास के गाँवों में प्रवेश कर रहे हैं। यह चिंताजनक स्थिति दोनों, स्थानीय निवासियों और वन्यजीवों, के लिए बड़ा खतरा पैदा कर रही है। यह दिखाता है कि जंगल और मानव बस्तियों के बीच का संतुलन बुरी तरह बिगड़ चुका है।
वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि इस संघर्ष के बढ़ने का मुख्य कारण मानवीय हस्तक्षेप और अव्यवस्थित पारिस्थितिकी-पर्यटन (Ecotourism) है। जंगल के अंदर बढ़ते पर्यटन और बुनियादी ढांचे के विकास ने बाघों के प्राकृतिक आवास और गलियारों को बाधित कर दिया है। आवास के नुकसान और शिकार की कमी के कारण ये शक्तिशाली शिकारी मजबूरी में जंगल की बाहरी परिधि पर आ रहे हैं। इस कारण गाँवों में पशुधन पर हमले और कभी-कभी मनुष्यों पर भी हमले की घटनाएँ बढ़ गई हैं।
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि पर्यावरण-पर्यटन को नियंत्रित नहीं किया गया और जंगल के बफर क्षेत्रों में मानवीय गतिविधियों पर रोक नहीं लगाई गई, तो यह संघर्ष और अधिक भयावह रूप ले सकता है। स्थानीय वन विभाग बाघों की आवाजाही पर नज़र रख रहा है और ग्रामीणों को सावधानी बरतने की सलाह दे रहा है। ग्रामीणों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए निवारक उपायों को तत्काल प्रभाव से लागू करने की आवश्यकता है। इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए वन्यजीव संरक्षण और स्थानीय आजीविका के बीच स्थायी संतुलन बनाना अनिवार्य है।