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बस्तर क्षेत्र में वृक्षारोपण की कमी के संबंध में, सीसीएफ आरसी दुग्गा ने कहा कि बस्तर के अंदर चार डिवीजनों में से केवल एक डिवीजन में ही बांस की कटाई की जाती है।
नक्सली गतिविधियों के कारण, वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी कई क्षेत्रों में प्रवेश करने में असमर्थ हैं, जिससे बांस जैसे महत्वपूर्ण वन संसाधनों का दोहन नहीं हो पा रहा है। इसके परिणामस्वरूप, राज्य सरकार को वन राजस्व का भारी नुकसान हो रहा है और स्थानीय समुदायों के लिए रोजगार के अवसर भी सीमित हो गए हैं, जो इन वन उत्पादों पर अपनी आजीविका के लिए निर्भर हैं।
बस्तर क्षेत्र, जो घने जंगलों और बांस के समृद्ध भंडार के लिए जाना जाता है, नक्सलवाद से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक है। वन विभाग के प्रयासों के बावजूद, सुरक्षा कारणों से कई इलाकों में वन प्रबंधन और कटाई गतिविधियां ठप पड़ी हुई हैं। सीसीएफ आरसी दुग्गा ने इस बात पर जोर दिया कि बस्तर के चार वन प्रभागों में से केवल एक में ही सीमित स्तर पर बांस की कटाई संभव हो पाई है, जबकि शेष क्षेत्र नक्सलियों के प्रभाव के कारण दुर्गम बने हुए हैं।
बांस, जिसे ‘हरा सोना’ भी कहा जाता है, कई उद्योगों के लिए एक महत्वपूर्ण कच्चा माल है, जिसमें कागज, निर्माण और हस्तशिल्प शामिल हैं। इसका उपयोग स्थानीय समुदायों द्वारा विभिन्न उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है। जंगलों में बांस का अप्रयुक्त भंडार न केवल आर्थिक नुकसान का कारण बन रहा है, बल्कि यह टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल संसाधन के संभावित उपयोग को भी बाधित कर रहा है।
राज्य सरकार अब नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने और वन विभाग के कर्मचारियों के लिए सुरक्षित पहुंच सुनिश्चित करने के लिए कदम उठा रही है। इसके साथ ही, स्थानीय समुदायों को वन प्रबंधन और बांस आधारित उद्योगों में शामिल करने की योजनाएं भी बनाई जा रही हैं, ताकि उन्हें रोजगार के अवसर मिल सकें और वन संसाधनों का स्थायी उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।