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बुजुर्गों ने बयां की 1971 भारत-पाक युद्ध की भयावहता. संतोष कुमार बिस्वास और तारिणी बिस्वास उन लाखों लोगों में से थे जिन्होंने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद बांग्लादेश से पलायन किया और पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर जिले के रायगंज में पुनर्वासित हुए। आज भी, उस युद्ध की यादें उनके दिलों में ताजा हैं, और वे उस समय के भयानक अनुभवों को साझा करते हुए बताते हैं कि युद्ध केवल विनाश लाता है, कोई स्थायी समाधान नहीं। उन्होंने उस दौर की हिंसा, डर और अनिश्चितता को याद किया, जब उन्हें अपना घर और सब कुछ छोड़कर भागना पड़ा था।
संतोष कुमार बिस्वास बताते हैं कि कैसे बमबारी और गोलियों की आवाजें हर तरफ सुनाई देती थीं, और लोगों को अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागना पड़ता था। तारिणी बिस्वास याद करती हैं कि कैसे महिलाओं और बच्चों को सबसे ज्यादा तकलीफें झेलनी पड़ी थीं। उन्होंने कहा कि युद्ध ने परिवारों को तोड़ दिया और लोगों को अपने प्रियजनों से अलग कर दिया। उनके अनुसार, युद्ध किसी भी समस्या का हल नहीं है, बल्कि यह सिर्फ दुख और तबाही लाता है।
इन बुजुर्गों की आपबीती हमें युद्ध की मानवीय कीमत का एहसास कराती है। उन्होंने अपने जीवन में जो कष्ट झेले, वे आज भी उन्हें परेशान करते हैं। उनकी कहानी उन सभी लोगों के लिए एक सबक है जो युद्ध को किसी समस्या का आसान समाधान मानते हैं। संतोष कुमार और तारिणी जैसे अनगिनत लोगों के अनुभव यह बताते हैं कि शांति और सद्भाव ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है।