
supreme court
आरोपी या परिवार के हलफनामे पर नहीं मिलेगी जमानत’
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने जमानत याचिकाओं से संबंधित एक महत्वपूर्ण फैसले में साफ कर दिया है कि अदालतें ‘गुमराह’ नहीं हो सकतीं और आरोपी या उनके परिवार के सदस्यों द्वारा दिए गए केवल हलफनामों (undertakings) के आधार पर जमानत नहीं दी जा सकती है। यह निर्णय न्याय प्रक्रिया में अधिक सख्ती और जवाबदेही लाने का संकेत देता है।
सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने जोर दिया कि उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों को जमानत याचिकाओं पर सख्ती से मामले की खूबियों (merits of the case) के आधार पर फैसला करना चाहिए। इसका मतलब है कि केवल आरोपी या उसके परिवार द्वारा दिए गए वादों या आश्वासनों के बजाय, अदालत को अपराध की गंभीरता, सबूतों की ताकत और आरोपी के भागने या सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने की संभावना जैसे पहलुओं पर गहराई से विचार करना होगा।
यह फैसला उन मामलों में महत्वपूर्ण साबित होगा जहाँ आरोपी जमानत पाने के लिए भावनात्मक अपील या कमजोर दलीलें पेश करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जमानत कोई अधिकार नहीं है, बल्कि एक विशेषाधिकार है जो कानून के तहत निर्धारित सख्त मानदंडों के आधार पर ही दिया जाना चाहिए। यह उम्मीद की जा रही है कि इस फैसले से आपराधिक न्याय प्रणाली में अधिक पारदर्शिता और निष्पक्षता आएगी और न्याय में देरी को भी रोका जा सकेगा।