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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि वकीलों को सीनियर एडवोकेट का दर्जा देने के नियमों पर “गंभीर विचार” करने की जरूरत है और यह मामला मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को भेज दिया, ताकि यह तय किया जा सके कि इसे बड़ी पीठ को सौंपा जाए या नहीं।
जस्टिस अभय एस ओका और ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि केवल कुछ मिनट के इंटरव्यू से किसी वकील की योग्यता और व्यक्तित्व का आकलन करना संदेहास्पद है। इंटरव्यू में 100 में से 25 अंक दिए जाते हैं, जो कुल अंकों का 1/4 है।
पीठ ने कहा कि 2017 और 2023 के इंदिरा जयसिंह बनाम सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया मामलों में दिए गए फैसलों के आधार पर वरिष्ठ अधिवक्ता पदनाम की प्रक्रिया निर्धारित की गई थी।
कोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या वकीलों को खुद आवेदन करने की अनुमति दी जानी चाहिए, जबकि अधिवक्ता अधिनियम की धारा 16(2) में इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं है। यदि कोई वकील अपने ज्ञान और योग्यता के आधार पर वरिष्ठ पदनाम का हकदार है, तो उसे इंटरव्यू के लिए बुलाना क्या उसकी गरिमा के खिलाफ नहीं होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि वरिष्ठ अधिवक्ता की भूमिका महत्वपूर्ण होती है और यदि अयोग्य उम्मीदवारों को यह दर्जा दिया जाता है, तो इससे न्यायपालिका की प्रतिष्ठा पर असर पड़ेगा।