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नई दिल्ली: 1980 के दशक में पाकिस्तान के तेज़ी से बढ़ते परमाणु कार्यक्रम को निष्क्रिय करने के इजरायल के कथित प्रस्ताव और उस पर भारत की तत्कालीन प्रतिक्रिया को लेकर एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर तीखी बहस छिड़ गई है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही में तत्कालीन इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार पर इस मामले में एक “ऐतिहासिक भूल” करने का गंभीर आरोप लगाया है, जिससे राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है।
मीडिया रिपोर्ट्स और कुछ ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, 1980 के दशक की शुरुआत में इजरायल ने भारत को पाकिस्तान के संदिग्ध परमाणु प्रतिष्ठानों, विशेषकर कहूटा में, पर एक संयुक्त सैन्य अभियान चलाने का प्रस्ताव दिया था। इस प्रस्ताव का मुख्य उद्देश्य पाकिस्तान को परमाणु हथियार विकसित करने से रोकना था, जिसे इजरायल और भारत दोनों अपनी सुरक्षा के लिए सीधा खतरा मानते थे। हालांकि, तत्कालीन इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली भारतीय सरकार ने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया और भारत ने सैन्य कार्रवाई से पीछे हटने का फैसला किया। इस फैसले के पीछे की सही वजहें, जैसे कूटनीतिक जटिलताएं या अप्रत्याशित अंतरराष्ट्रीय परिणामों का डर, हमेशा से बहस का विषय रही हैं।
हिमंत बिस्वा सरमा के इस बयान ने कांग्रेस को घेरने का एक नया राजनीतिक मौका दिया है, खासकर जब देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर राजनीतिक बयानबाजी तेज है। आलोचकों का तर्क है कि यदि भारत ने उस समय कार्रवाई की होती, तो आज क्षेत्र का भू-राजनीतिक परिदृश्य काफी अलग हो सकता था। हालांकि, कुछ रक्षा विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि ऐसी किसी भी सैन्य कार्रवाई के अंतरराष्ट्रीय परिणाम बेहद भयावह हो सकते थे। यह ऐतिहासिक प्रकरण आज भी भारत की रणनीतिक स्वायत्तता, राष्ट्रीय सुरक्षा निर्णयों और अतीत की नीतियों पर गहन चिंतन का विषय बना हुआ है।