
RAHUL GANDHI
नई दिल्ली: कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए शिक्षा को सामाजिक बराबरी का सबसे अहम औज़ार बताया। उन्होंने कहा कि बाबासाहेब आंबेडकर ने यह स्पष्ट कर दिया था कि शिक्षा ही वह शक्ति है, जिससे वंचित समाज जाति व्यवस्था की बेड़ियां तोड़ सकता है, लेकिन अफसोस की बात है कि आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी करोड़ों छात्र उच्च शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।
राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि शिक्षा के निजीकरण और सरकारी संस्थानों में कटौती के कारण गरीब, आदिवासी, दलित और पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिए आगे बढ़ने के रास्ते बंद होते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि जिन विश्वविद्यालयों को कभी सामाजिक न्याय की प्रयोगशाला कहा जाता था, आज वहां फीस बढ़ा दी गई है और सीटें घटा दी गई हैं।
उन्होंने सवाल उठाया, “जब शिक्षा ही विकास का आधार है, तो फिर सरकार शिक्षा बजट में कटौती क्यों कर रही है? क्यों गाँवों के बच्चे अब भी टूटी हुई छतों और बिना शिक्षकों वाले स्कूलों में पढ़ने को मजबूर हैं?”
राहुल गांधी ने यह भी कहा कि नई शिक्षा नीति में समान अवसर का ज़िक्र जरूर है, लेकिन जमीन पर इसका उल्टा असर दिख रहा है। उन्होंने ओबीसी, एससी, एसटी और अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों को पर्याप्त छात्रवृत्ति, कोचिंग और संसाधन देने की मांग की।
उन्होंने सरकार से अपील की कि शिक्षा को केवल ‘इलीट’ वर्ग तक सीमित न किया जाए, बल्कि यह हर बच्चे का हक बने—चाहे वह किसी भी जाति, धर्म या क्षेत्र से आता हो।
राहुल गांधी का यह बयान सामाजिक न्याय और समान शिक्षा के मुद्दे पर राजनीतिक बहस को और तेज़ कर सकता है, खासकर ऐसे समय में जब देश में शिक्षा और अवसर की असमानता बढ़ती दिख रही है।