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गुजारा भत्ता की हकदार: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि बच्चे की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ना काम का स्वैच्छिक परित्याग नहीं माना जाएगा और ऐसी महिला गुजारा भत्ता पाने की हकदार है। जस्टिस शर्मा ने 13 मई के अपने आदेश में एक महिला और उसके नाबालिग बेटे को अंतरिम गुजारा भत्ता देने के निचली अदालत के आदेश को रद्द करने से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट ने माना कि बच्चे की परवरिश मां और बच्चे दोनों की जिम्मेदारी है, और यदि मां बच्चे की बेहतर देखभाल के लिए नौकरी छोड़ती है, तो इसे उसकी स्वेच्छा से काम छोड़ने के तौर पर नहीं देखा जा सकता।
अदालत ने कहा कि बच्चे की जरूरतों को प्राथमिकता देना और उसकी उचित देखभाल करना माता-पिता दोनों का कर्तव्य है। यदि पत्नी बच्चे की देखभाल के लिए अपना करियर छोड़ती है, तो यह नहीं कहा जा सकता कि उसने बिना किसी पर्याप्त कारण के काम छोड़ा है। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के इस विचार से सहमति जताई कि पत्नी को अपने और अपने बच्चे के भरण-पोषण के लिए वित्तीय सहायता की आवश्यकता है, खासकर जब वह वर्तमान में बेरोजगार है और बच्चे की देखभाल कर रही है।
इस फैसले के साथ, दिल्ली हाईकोर्ट ने महिलाओं के अधिकारों और बच्चों की देखभाल के महत्व को रेखांकित किया है। यह निर्णय उन महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण राहत के रूप में आता है जो अपने बच्चों की परवरिश के लिए अपने करियर से समझौता करती हैं। अब उन्हें इस आधार पर गुजारा भत्ता से वंचित नहीं किया जा सकेगा कि उन्होंने स्वेच्छा से काम छोड़ा है।