
संसद में बीजेपी नेता सुषमा स्वराज के साथ उनकी शायरी के आदान-प्रदान ने सोशल मीडिया पर खूब चर्चा बटोरी।
संसद में शेर-ओ-शायरी का अनोखा अंदाज
- 2011 की बहस: लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी मनमोहन सरकार पर वार करते हुए शहाब जाफरी का शेर पढ़ा:
- “तू इधर-उधर की न बात कर, ये बता कि काफिला क्यों लुटा। हमें रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है।”
- मनमोहन का जवाब: सिंह ने अल्लामा इकबाल का शेर पढ़कर जवाब दिया:
- “माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूँ मैं, तू मेरा शौक देख, मेरा इंतजार देख।”
2013 में दोबारा हुई शायरी की जंग
- राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव की बहस में मनमोहन सिंह ने मिर्जा गालिब का शेर पढ़ा और सुषमा स्वराज पर चुटकी ली।
संसदीय बहस में अनूठा आकर्षण
- दोनों नेताओं का साहित्यिक झुकाव और शायरी का प्रयोग संसद की बहस को गहराई और मनोरंजन प्रदान करता था।
- सोशल मीडिया पर इन बहसों के वीडियो लाखों बार देखे जा चुके हैं।
सादगी और गहराई का मेल
- मनमोहन सिंह की शायरी का जवाब देने की शैली ने उन्हें अद्वितीय नेता बना दिया।
- सुषमा स्वराज और मनमोहन सिंह की यह शायरी भारतीय राजनीति में साहित्यिक योगदान का उदाहरण है।
राजनीति में साहित्य का महत्व
- संसद में शायरी के इस इस्तेमाल ने बहस को गरिमा और समझदारी का नया आयाम दिया।
- यह दर्शाता है कि राजनीति और साहित्य कैसे मिलकर संवाद को समृद्ध बना सकते हैं।
निष्कर्ष:
मनमोहन सिंह और सुषमा स्वराज की शायरी ने राजनीति के एक गंभीर मंच पर हल्की-फुल्की और गहरी बहस की मिसाल कायम की। यह उनके व्यक्तित्व की महानता और साहित्यिक रुचि को दर्शाता है।