
नई दिल्ली : मणिपुर में जारी हिंसा और अशांति के बीच पूर्व त्रिपुरा के मुख्यमंत्री और भाजपा सांसद बिप्लब देब ने लोकसभा में बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि मणिपुर में राष्ट्रपति शासन (President’s Rule) जबरन नहीं लगाया गया, बल्कि वहां की परिस्थितियों को देखते हुए ऐसा करना मजबूरी बन गया था। बिप्लब देब ने कहा कि राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति लगातार बिगड़ रही थी, जिसके कारण केंद्र सरकार को यह सख्त फैसला लेना पड़ा। लोकसभा में क्या बोले बिप्लब देब? लोकसभा में बोलते हुए बिप्लब देब ने कहा, “मणिपुर में राष्ट्रपति शासन थोपने की जरूरत नहीं थी, लेकिन राज्य की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए यह जरूरी हो गया था। वहां की सरकार स्थिति को संभालने में असफल हो रही थी। लोगों की सुरक्षा और शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए केंद्र सरकार को यह कदम उठाना पड़ा।” उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति शासन लगाना सरकार का आखिरी विकल्प था, लेकिन राज्य की स्थितियों को देखते हुए इससे बचा नहीं जा सकता था। बिप्लब देब ने विपक्ष पर भी निशाना साधते हुए कहा कि मणिपुर की स्थिति को लेकर विपक्ष सिर्फ राजनीति कर रहा है। उन्होंने कहा, “जब राज्य की जनता को शांति और सुरक्षा की जरूरत थी, तब विपक्ष ने इसे राजनीतिक मुद्दा बना दिया। केंद्र सरकार ने राज्य की जनता की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है।” मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की पृष्ठभूमि मणिपुर में पिछले कुछ महीनों से जातीय हिंसा और अशांति का माहौल बना हुआ था। कई इलाकों में हिंसक झड़पें और आगजनी की घटनाएं सामने आई थीं। राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने के बाद केंद्र सरकार ने हालात पर काबू पाने के लिए राष्ट्रपति शासन लागू करने का फैसला किया था। सरकार का रुख स्पष्ट बिप्लब देब ने कहा कि मणिपुर की स्थिति को सुधारने के लिए केंद्र सरकार हर संभव कदम उठा रही है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति शासन का फैसला जनता की सुरक्षा और शांति बनाए रखने के लिए किया गया है। “हमारा उद्देश्य है कि मणिपुर में जल्द से जल्द शांति और सामान्य स्थिति बहाल हो,” उन्होंने कहा। इस बयान के बाद मणिपुर की स्थिति को लेकर राजनीति और तेज होने की संभावना है। अब सबकी नजरें इस पर टिकी हैं कि केंद्र सरकार मणिपुर में शांति बहाल करने के लिए आगे क्या कदम उठाती है।