
विपक्षी नेताओं का कहना है कि यह कदम अविश्वास प्रस्ताव से बचने के लिए उठाया गया है, जिसे कांग्रेस राज्य विधानसभा में लाने वाली थी।
शिवसेना (UBT) की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, “यह बहुत कम और बहुत देर से लिया गया फैसला है। पिछले दो साल से मणिपुर में हिंसा जारी है। मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग लगातार की जा रही थी, लेकिन उन्होंने अब तक पद नहीं छोड़ा।”
प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, “शायद उन्हें अब जाकर बोध हुआ है। लेकिन यह नैतिकता की वजह से नहीं, बल्कि अविश्वास प्रस्ताव के डर से हुआ है। उन्हें डर था कि उनके ही पार्टी के विधायक उनके खिलाफ मतदान कर सकते हैं।”
तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने इसे मणिपुर के इतिहास का ‘शर्मनाक अध्याय’ करार दिया। उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री ने इस्तीफा इसलिए दिया क्योंकि वह अविश्वास प्रस्ताव के जरिए होने वाले अपमान से बचना चाहते थे। यह कदम नैतिकता के आधार पर नहीं, बल्कि मजबूरी में उठाया गया है।”
महुआ मोइत्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसते हुए कहा, “प्रधानमंत्री यदि अमेरिका और फ्रांस के दौरे से समय निकाल सकें, तो उन्हें मणिपुर की यात्रा भी करनी चाहिए।”
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी कहा कि मुख्यमंत्री का इस्तीफा बहुत पहले हो जाना चाहिए था। उन्होंने कहा, “हम लंबे समय से यह मांग कर रहे थे। उनकी प्रशासनिक विफलता और स्थिति को संभालने में असमर्थता साफ नजर आ रही थी।”
थरूर ने कहा कि “अब जब हम अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले थे, तो यह साफ हो गया कि उनके पास खुद की पार्टी में भी पर्याप्त समर्थन नहीं बचा था।”
समाजवादी पार्टी के नेता राजीव राजी ने भी केंद्र सरकार को “बहुत देर से कार्रवाई करने” के लिए आड़े हाथों लिया।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने कुंभ मेले में गंगा स्नान कर देश और मणिपुर की शांति के लिए प्रार्थना की थी। उसके कुछ दिनों बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
विपक्षी नेताओं ने उम्मीद जताई है कि प्रधानमंत्री जल्द मणिपुर का दौरा करेंगे और वहां की स्थिति को समझने का प्रयास करेंगे।