
यह कदम मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के रविवार को इस्तीफा देने के बाद उठाया गया। अब राज्य का प्रशासन केंद्र के नियंत्रण में आ गया है।
राष्ट्रपति शासन की घोषणा तब हुई जब सोमवार को प्रस्तावित विधानसभा सत्र आयोजित नहीं किया जा सका। संविधान के अनुसार, छह महीने के भीतर विधानसभा सत्र न होने पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश राज्यपाल द्वारा की जाती है।
भाजपा के उत्तर-पूर्व प्रभारी संबित पात्रा ने पिछले चार दिनों में राज्य के वरिष्ठ नेताओं के साथ कई बैठकें कीं, लेकिन मुख्यमंत्री पद के लिए सर्वसम्मत उम्मीदवार तय नहीं हो सका।
मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह पर हिंसा को नियंत्रित करने में असफलता का आरोप लगने के बाद इस्तीफे का दबाव बढ़ गया था। मणिपुर में जातीय हिंसा ने पूरे राज्य को विभाजित कर दिया था।
पिछले साल अक्तूबर में, मणिपुर के 19 विधायकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मुख्यमंत्री को हटाने की मांग की थी। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी (CFSL) से एन बीरेन सिंह के कथित ऑडियो टेप की जांच रिपोर्ट मांगी थी, जिसमें उनके जातीय हिंसा में कथित भूमिका की बात कही गई थी। इस मामले ने मुख्यमंत्री पर दबाव और बढ़ा दिया।