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चेन्नई, तमिलनाडु: तमिलनाडु में कम वेतन वाली नौकरियों के लिए बस चुके बिहार के हजारों प्रवासी मजदूर इस चुनाव के मौसम में मतदान करने के अपने गृह राज्य वापस जाने से कतरा रहे हैं। लगभग 2,000 किलोमीटर से अधिक की लंबी दूरी और असुरक्षित दैनिक मजदूरी वाली नौकरियाँ उन्हें मतदान के लिए छुट्टी लेने से रोक रही हैं। इस स्थिति ने लोकतंत्र में प्रवासी श्रमिकों की भागीदारी पर चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
प्रवासी परिवारों का कहना है कि बिहार जाकर वोट देने का मतलब है कई दिनों की मजदूरी का नुकसान उठाना, जो उनके लिए संभव नहीं है। निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले कई मज़दूर बताते हैं कि उन्हें ज्यादा कमाने के लिए छुट्टियों में भी काम करना पड़ता है। एक श्रमिक ने बताया कि वापसी यात्रा और परिवार के साथ कुछ समय बिताने के लिए उन्हें कम से कम छह दिन चाहिए, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर बुरा असर पड़ेगा। कई प्रवासी परिवार अब तमिलनाडु में स्थायी रूप से बस गए हैं, और उन्होंने अपने बच्चों को स्थानीय स्कूलों में दाखिला भी दिला दिया है। रबर दस्ताने निर्माण, जटा उत्पादन और घरेलू कार्यों जैसे कम वेतन वाले क्षेत्रों में काम करने वाले ये श्रमिक इस चुनाव में यात्रा को एक विकल्प नहीं मानते।
अधिकारियों के आँकड़ों के अनुसार, बिहार के प्रवासी तमिलनाडु में अंतर-राज्य प्रवासी (ISM) मज़दूरों का दूसरा सबसे बड़ा समूह हैं। उनकी अल्प आय और नौकरी की अनिश्चितता उन्हें मतदान के लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग करने से बाधित कर रही है। कुछ मज़दूरों ने सरकार से मांग की है कि प्रवासी श्रमिकों को उनके कार्यस्थल से ही मतदान करने में मदद करने के लिए एक तंत्र (Mechanism) बनाया जाए, ताकि वे राष्ट्र निर्माण में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकें।