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नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि सैन्य अभियान में तैनात एक सैनिक को, जो साथी सैनिक की गोली लगने से घायल होता है, उसे उसके लाभों से वंचित नहीं किया जा सकता है। यह फैसला सेना के जवानों के कल्याण और उनकी सेवा की पहचान के महत्व को रेखांकित करता है।
भारत संघ और अन्य याचिकाकर्ताओं ने 22 फरवरी, 2022 के सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (AFT) के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें प्रतिवादी रुक्मणी देवी के दावे पर विचार करने का निर्देश दिया गया था। रुक्मणी देवी के पति की मृत्यु सैन्य ऑपरेशन के दौरान साथी सैनिक की गोली लगने से हो गई थी। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि यह मृत्यु सीधे तौर पर शत्रुतापूर्ण कार्रवाई के कारण नहीं हुई थी, इसलिए संबंधित लाभ नहीं दिए जा सकते।
हालांकि, हाई कोर्ट ने AFT के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि एक सैनिक जो सैन्य ऑपरेशन में तैनात है और किसी भी परिस्थिति में घायल होता है या उसकी मृत्यु हो जाती है, और ऐसे में किसी भी दुर्भाग्यपूर्ण घटना के लिए उसे जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। यह फैसला उन सभी सैनिकों और उनके परिवारों के लिए एक बड़ी राहत है जो देश सेवा के दौरान किसी भी अनपेक्षित घटना का शिकार होते हैं।